कौन चुकाये मोल, धरा का देखो
वंदनीय भूगोल, धरा का देखो
स्वर्ग अनेक कहीं होंगे तो होंगे
बजता चहुँदिश ढोल, धरा का देखो
मानव जबसे प्रकृति ध्वंस में डूबा,
आसन डाँवाडोल , धरा का देखो
लूट ले गया सब हरियाली मौसम,
फिर मन रहा टटोल, धरा का देखो
सिसक रही चुपचुप जाने कबसे,
रुँधा हुआ है बोल, धरा का देखो
पाला पोसा नीर, अन्न, फल देकर,
मनुज हुआ बकलोल, धरा का देखो
वातावरण स्वस्थ और निर्मल कर दो,
रूप बनेगा लोल, धरा का देखो
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
117 आदिलनगर, विकासनगर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश- 226022
दूरभाष- 09956087585
ईमेल- [email protected]