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प्रेम करने के तरीक़े चाहिए अलग हो
या प्रेम में जीने का सलीका
किसी अजनबी की तरह
प्रेम आ ही जाता हैं
पथ का रास्ता भले ही मालूम ना हो
मगर,
अनजान रास्ता कोई
मंज़िल मुकम्मल कर ही लेता हैं
किसी की ज़िंदगी में
वो पत्थर की ठोकर बनता हैं तो
किसी की ज़िंदगी में मंज़िल का द्वार
पर,
प्रेम किसी न किसी तरह
दरवाजे पर दस्तक दे ही जाता हैं
वो कोई लड़की हो सकती हैं
या कोई लड़का
या हो सकता है ईश्वर
किसी भी
रंग, रूप, शब्द में आ सकता हैं
उसे ना तव्वजो आती हैं
और ना कोई अख़्तियार आता हैं
प्रेम करने के लिए
अब तक कोई दरवाज़ा नहीं बना
जिसके लिए उसे किसी की अनुमति लेनी पडे़
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सदैव
पीड़ाओं से
अधिक भारी रहा
प्रेम
इसलिए
जब भी किया गया
प्रेम
तब-तब
पीड़ाएं नहीं
प्रेम अधिक कष्टदायक रहा
उसे पता हैं, प्रेम पीड़ा है
और पीड़ा प्रेम
देव लाल गुर्जर
कुम्हरला, पो. रोनिजा तह. हिण्डोली,
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