तेरी आँखों में छुपे
उस राज़ को मैं जानू कैसे
है अजब सी मिठास तेरी बातों में
सुनाऊं कैसे
दिल हर रोज
तुझसे मिलने के बहाने ढूंढता है
इस बेताबी का
कोई मरहम न तेरे बिन ना तेरे बाद
ये समझाऊं कैसे
हर रोज तेरी नई लत सी हो गई
मुझे बताऊं कैसे
मंज़िल ही तू मेरी, ख्वाहिश भी तू
मेरी है तू, सिर्फ मेरी है तू
ये हक जताऊं कैसे
यशराज गौतम