ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है!
यहां ना कोई अपना होता ना होने देता
यहां रंगों का मेल है
मिलावट का खेल है
आखों में आसूं जैसे लहरें भी फेल है।
यूं सिमट ना जाऊं मैं
तुझसे दूर ना हो जाऊं मैं
डर है तो बस खुद से
कहीं टूट ना जाऊं मैं।
चश्में अनेक और आँखें फरेब है
दिलो-दगाबाज़ मानो कितनो में एक है।
गिन-गिनकर कर लूटा जैसे सपने हज़ार हो
यहां बिकते किरदार जैसे लाखों बाज़ार हो।
ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है!
यशराज गौतम