जाति धर्म प्रांत से परे: जसवीर त्यागी

मेट्रो ट्रेन में तीन-चार साल का
सुंदर-सलोना बच्चा
स्वच्छंद घूम रहा है यहाँ से वहाँ
किसी को छेड़ता
किसी का सामान छूता
किसी को देखकर हँसता-मुस्कुराता
बेवजह-बेबात

नहीं जानता सामने वाले
इंसान की
जाति, धर्म, प्रांत
वह तो बस बालपन की मस्ती का बेताज बादशाह है
जो बेरोकटोक करता है
अपनी हसरतों के हाथी की सवारी

मुसाफिरों की निगाह के मध्य में है बच्चा
हर कोई उसे अपनी ओर बुलाता है
बच्चा भी अपनी स्नेह-शरारत की रस्सी से
खींचता है
हर किसी को अपनी तरफ

जब कोई इंसान
जाति, धर्म, प्रांत से परे होता है
तब वह भी किसी बच्चे की तरह
आकर्षित करता है अपनी ओर

जसवीर त्यागी