जन्नत दिखती है मुझे माँ के गाँव में
मिलती है जन्नत बस माँ के पाँव में
जन्नत सा सुकूं मिलता है बेचैनियों में
जब छुप जाती हूँ आँचल की छांव में
जीतना बेशक सिखाया है माँ ने मुझे
पर हारना भाता है मुझे माँ के दांव में
जूझता है मन मुश्किलों से जब मेरा
रोना आ जाता है मुझे अपने ताव में
देखा नहीं जन्नत मगर माँ में जन्नत मिली
तैरना है सदा माँ के दुलार की नाव में
-अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ