इश्क का मारा- सत्यम भारती

स्वप्न अवनी से निकल अब जाग तू,
मेहनत की चिंगारी से लगा आग तू

नफरतें-मर्सिया पपीहा गाता इधर,
बुलबुल सुना अमन का राग तू

जीत का मजा संघर्षों की तलब में है,
वक्त के थपेड़ों से ना भाग तू

प्रेम नहीं विष भरा मानव के अंदर,
डस कर मर जाएगा नाग तू

मुद्दतों से राधा नाराज है मुझसे,
दिल जलाने आया है फाग तू

इश्क का मारा सुकून नहीं पाता कहीं,
दिल लगाने से अच्छा ले ले वैराग तू

-सत्यम भारती
भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र,
परास्नातक द्वितीय वर्ष छात्र,
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी,
नई दिल्ली- 110067