उड़ने दो इनको- आशा शुक्ला

नैना रोज बालकनी से देखती थी कि सड़क पर सब्जी का ठेला लेकर श्यामू नामक सब्जी वाला आया करता था। देखने से ही लगता था कि जैसे कोई अव्यक्त पीड़ा उसके चेहरे पर छपी है। उसकी आवाज में दर्द है। बहुत दिनों से वह उससे पूछना चाहती थी। लेकिन वह संभ्रांत परिवार की महिला थी। कॉलोनी वालों का लिहाज करती थी। सब्जी वाले से कैसे बातें कर सकती थी? वैसे उसे कोई ऐतराज नहीं था न ही परहेज था।
थोड़े दिनों के बाद उसने देखा कि अब श्यामू की जगह उसकी पत्नी चंदा ठेला लगाने लगी। उसके साथ उसके दो बच्चे भी आते थे। एक पाँच साल की बच्ची और एक डेढ़ साल का बच्चा। लड़की उस बच्चे को गोद में लेकर खिलाती रहती थी।
श्यामू की पत्नी चंदा से सभी सब्जी खरीद लेते थे। उसका स्वभाव इतना मृदु था कि अगर किसी के पास नगद पैसे नहीं होते थे तो वह उन्हें उधार में भी सब्जियाँ दे देती थी।
अक्सर लोगों को सब्जी वालों से शिकायत रहती है कि वे कम तोलते हैं लेकिन जब वह तोलती थी तो एक-आध सब्जी ज्यादा भी डाल देती थी। साथ में धनिया और मिर्च चटनी के लिए दे देती थी।
उसके स्वभाव से सभी लोग खुश थे। वे लोग सड़क के पार एक किराए के मकान में रहते थे। सभी लोग उनके घर को जानते थे क्योंकि जरूरत पड़ने पर वक्त-बेवक्त, रात-बिरात उनके यहां सब्जी मिल जाती थी।
आज कई दिन हो गए थे लेकिन कोई भी सब्जी बेचने नहीं आया था। नैना के मन में उनके बारे में जानने की बहुत उत्सुकता हो रही थी।
वह सोच रही थी कि चल कर देखूँ कि ये लोग सब्जी बेचने के लिए क्यों नहीं आ रहे हैं? क्या हो गया है आखिरकार?
नैना के पति धीरज बाबू एक एनजीओ का संचालन करते हैं और जनकल्याण के बहुत सारे काम करते रहते हैं। नैना भी दयालु हृदय की है और एनजीओ के कामों में वह धीरज बाबू की मदद करती रहती है।
जब वह चंदा के यहां पहुँची तो देखा कि चंदा जमीन पर पड़ी चटाई पर लेटी हुई थी। उसे बहुत जोर से बुखार था।वह छोटी लड़की अपने भाई को चुप करा रही थी पर खाने के लिए कुछ था ही नहीं।
नैना यह हाल देख कर बहुत द्रवित हो गई उसने लड़की को दूध लाने के लिए रुपए दिए। फोन करके डॉक्टर को बुलाया और चंदा को दवा दिलवाई । घर में खाने-पीने के लिए सारा सामान मँगवाया। बच्चा दूध पीकर खुश होकर खेल रहा था।
लड़की का चेहरा संतोष और प्रसन्नता की आभा से चमक रहा था। उसके अंग -प्रत्यंग से कृतज्ञता छलक रही थी। अब वह हँस रही थी।
तुम्हारा नाम क्या है बेटी? नैना ने प्यार से पूछा।
“गौरी!” अपनी मीठी आवाज में उसने अपने नाम की घोषणा की।
“तुम्हारे पापा कहाँ गए हैं बेटी?” नैना ने बात आगे बढ़ाई।
“पापा शहर में दवा लेने गए हैं! उनको कैंसर है तभी तो वह सब्जी का ठेला नहीं लगा पाते हैं! अब तो मम्मी भी बीमार हो गई हैं!
आप बहुत अच्छी हैं मेमसाब।
“पढ़ने नहीं जाती हो?” नेहा अब असली बात पर आ गई थी।
छोटी सी बच्ची के चेहरे पर उलझन और दर्द की रेखाएँ खिंच गईं थीं। वह धीरे-धीरे बताने लगी: “पापा की बीमारी में रुपए खर्च होते हैं। उसके बाद मम्मी बीमार हो गईं सब्जी भी बेचने नहीं जा पाईं इसीलिए पैसे भी नहीं आ पाए। जब घर में खाने के लिए पैसे नहीं है तो फिर पढ़ाई के लिए पैसे कहाँ से आएँगे?
फिर कुछ निश्चय करके बोल उठी: “मुझे पढ़ने का बहुत शौक है अब मैं सब्जी का ठेला लगाया करूँगी ।भैया को भी साथ में रखा करूँगी और अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जमा करुँगी।”
उसने ऐसी बात कही थी कि जीवन के दर्शन की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले भी उसके आगे नतमस्तक हो जाएँ। नैना ने मन में सोचा कि वह उसकी मदद करेगी। जब उसे भगवान ने इस लायक बनाया है कि वह कुछ कर सकती है; उसकी थोड़ी सी मदद से उस लड़की की जिंदगी सँवर सकती है तो वह उसके लिए रास्ता बनाएगी। नैना ने उसके अंदर जिस जिजीविषा और प्रबल साहस की झलक देखी थी उसे वह अनदेखा नहीं कर सकी।
इन विपत्ति की घड़ियों में, विषम परिस्थितियों से कमर कसकर लड़ने के लिए तैयार उस नन्हीं साहस की मूर्ति को नैना ने गले से लगा लिया।
नैना ने धीरज बाबू से बात की। अगले दिन नैना और धीरज बाबू गौरी के घर पहुँचे।श्यामू को उन्होंने एक बड़े हॉस्पिटल में एडमिट करवाया, जहाँ उसकी जाँच हुई तो पता चला कि उसका कैंसर अभी फर्स्ट स्टेज में ही था। लंबे उपचार से और अच्छे इलाज से श्यामू ठीक हो गया।
धीरज बाबू ने उसे एक हॉस्पिटल में माली के पद पर लगवा दिया उसको अच्छी सैलरी मिलने लगी थी। गौरी की पढ़ाई का जिम्मा नैना और धीरज बाबू ने अपने ऊपर ले लिया और उसको एक बहुत अच्छे स्कूल में दाखिल करवा दिया। गौरी की माँ चंदा उसी कॉलोनी में सब्जी का ठेला लगाती हैं, क्योंकि कॉलोनी वालों ने उसे छोड़ा ही नहीं। सभी लोग उनसे सब्जी खरीदते हैं क्योंकि इतने दिनों तक उसने सब्जी नहीं बेंची थी तो कॉलोनी में सभी को एक कमी महसूस हो रही थी। अब उनका पूरा परिवार खुशहाल है।
एक दिन नैना उसे देखने गई तो गौरी पढ़ रही थी उसको देखते ही वह चिड़िया की तरह चहक उठी, “मेम साहब! आइए! देखिए मेरा रिजल्ट! अपने क्लास में फर्स्ट आई हूँ!
नैना ने उसको गोद में उठा लिया। प्यार किया और कहा,
“मेमसाब नहीं! माँ कहो! मेरी छोटी सी बुलबुल। खूब पढ़ो और तरक्की करके चिड़िया की तरह खुले आकाश में उड़ान भरो।
प्रतिभा और गुण किसी में बंटे हुए नहीं होते।ये किसी भी जाति, धर्म अथवा वर्ग में हो सकते हैं। नैना ने उसकी प्रतिभा को पहचाना था और उस नन्ही सी चिड़िया को, ऊँचे गगन में उड़ने के लिए, ढ़ाई और साधनों के पंख दे दिए थे।

आशा शुक्ला