धूप- राजीव कुमार झा

आज धूप फिर आ गयी
कितनी दूर से चलकर कुहासे में,
वह दरवाजे पर आयी
सीढी पर थोड़ी देर खड़ी होकर,
उसने किसी का इंतजार किया
फिर सीधे छत पर चली आयी
रोशनी में सारे पेड़ खुश हैं
आकाश कितना नीला है
नदी के किनारे खेत हरे-भरे हैं
बाग बगीचे फूल मंजरियों से लदे हैं
यह गीत का स्वर
कहाँ सुनायी दे रहा है

-राजीव कुमार झा