कब्रिस्तान में कोरोना- नवेन्दु उन्मेष

कोरोना को लेकर कब्रिस्तान में हलचल तेज हो गयी थी। प्रत्येक मुर्दा यह जानने को बेताब था कि आखिर कोरोना क्या है। कुछ मुर्दे तो कोरोना देखने के लिए शहरों में जाना भी चाह रहे थे लेकिन मुर्दा संघ के नेता ने उनसे कहा कि वे अपने कब्र में सुरक्षित पड़े रहे हैं। किसी भी स्थिति मेंवकब्रिस्तान से बाहर नहीं निकलें। अगर कब्रिस्तान में कोरोना आ गया तो हम कहां जायेंगे। क्योंकि जीवितों को अगर कोरोना हो जाता है तो उनके पास अस्पताल की व्यवस्था है जहां वे ठीक हो सकते हैं। लेकिन कब्रिस्तान में न कोई अस्पताल है और न कोई इसकी दवा।
तभी एक मुर्दे ने सवाल खड़ा किया कि आखिर यह कोरोना है क्या। नेता ने कहा कि कोरोना आदमी द्वारा आदमी के लिए बनाया गया एक वायरस है जो किसी भी जंगली जानवर से ज्यादा खतरनाक है। इसके डर से आदमी घर में बंद हो जाता है। शहर में लाॅकडाउन हो जाता है। पहले आदमी गीत गुनगुनाता था कि जब दिल न लगे दिलदार हमारी गली आ जाना। अब तो आदमी खुद अपनी गली को कोरोना के डर से बंद कर रहा है। कोरोना कह रहा है-छूले तो बेटा गेले। इसका मतलब हुआ कि आदमी आदमी के डर से भाग रहा है। यहां तक कि मास्क से मुंह छिपाकर जी रहा है।
इस पर एक अन्य मुर्दे ने कहा कि सुना है आदमी कोरोना के डर से घर पर रोटी बेल रहा है। सरकार कह रही है कि जब तक आदमी गोल-गोल रोटी बेलना नहीं सीख जाता तब तक लाक डाउन जारी रहेगा। तभी रामू नामक मुर्दे ने कहा कि नहीं, कोरोना का कहना है कि जीवितों ने चेचक जैसी महामारी को माता का दर्ज दे रखा है। अब उसकी मांग है कि जीवित लोग कम से कम उसे फूफा का दर्जा तो दें तभी वह यहां से जायेगा। लेकिन आदमी है कि मानता ही नहीं वह किसी भी स्थिति में उसे फूफा का दर्जा देने को तैयार नहीं है। इसलिए कोरोना शहर और गांवों में उधम मचाये हुए है।
इसी बीच कब्रिस्तान के गेट पर कुछ लोगों की हलचल तेज हो गयी। मुर्दो का ध्यान उस हलचल की ओर आकर्षित हो उठा। मुर्दा संघ के नेता ने अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता लगाया कि कब्रिस्तान में कोरोना की मौत मरे एक व्यक्ति को लाया गया है। इसी का विरोध जीवित लोग कर रहे हैं। जीवितों का कहना था कि अगर इस मुर्दे को इस कब्रिस्तान में दफनाया गया तो यहां भी कोरोना फैलेगा।
इस पर एक मुर्दे ने कहा यह तो अच्छी बात है कि जीवित लोग खुद के साथ-साथ हम मुर्दो का भी पूरा ख्याल रख रहे हैं। हमें तो जीवितों के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित देना चाहिए। एक अन्य मुर्दे ने कहा कि श्रद्धांजलि तो तब दी जाती है जब कोई आदमी मर जाता है, तुम जीवितों को श्रद्धांजलि कैसे दे सकते हो। इस पर उसने कहा हम मुर्दे हैं जो चाहे कर सकते हैं। हम जीवितों को श्रद्धांजलि दे सकते हैं। श्रद्धांजलि देना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
इसके बाद मुर्दो ने जीवितों के लिए एक सभा बुलायी और उन्हें श्रद्धांजलि दी और कहा-तुम जीओ हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार। हमारी है यही आरजू। इसके बाद सभी मुर्दे अपनी कब्र के अंदर चले गये और कब्र की सलामती के लिए दुआ करने लगे।

-नवेन्दु उन्मेष
पत्रकार
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