फरवरी: चित्रा पंवार

चित्रा पंवार

1
शीत ऋतु
कुछ माह पीहर में बिता कर
लौट रही है अपने ससुराल
पेड़ों से झड़े पत्ते
जैसे न जाने की जिद में
ननिहाल के आंगन में
यहां वहां भागते उसके शिशु
शुष्क हवाएं गा रही हैं
बिदाई की उदास धुन पर पिया मिलन के गीत
ग्रीष्म के स्वागत में
महक रहें हैं गुलाब
दूधिया रस से भरी हैं
गेहूँ की बालियां
ठुमक रही है सरसों
मिठास से भरी हैं गन्ने की पोरी
कह रही है फरवरी
समय के साथ बहो
मुक्त करो जाते को
आते के गले लगो
परिवर्तन उदासी का नहीं
जीवन के उत्सव का नाम है

2
ट्यूलिप, गुलाब
डहेलिया, बिगोनिया
पैंसी, गेंदा, जरबेरा
गुड़हल, गजेनिया
शोभा बढ़ाते रहे प्रदर्शनियों की
प्रशंसा पाते रहे
उन्हें उगाने वाले
अख़बार भरे थे उनके अथाह श्रम की असंख्य कहानियों से
ठीक उसी समय
खेतों में उदास खड़ी थी सरसों
विपरीत परिस्थितियों में भी उसे उपजाने वाले
गुमनाम, ग़रीब किसान
झूल रहे थे पेड़ की डाल पर
या दो घूंट आंसुओं के साथ
सल्फास गटक कर
किसी अंधेरी कोठरी में
सो रहे थे गहरी नींद…

3
कौन मांगता है प्रेम में
तुमसे तुम्हारी जान
बस इतना ही तो चाहा है कि
अबकी बार आना
तो जेब में रख लाना
थोड़ा सा ज्यादा वक्त
और थमा देना मुझे
जैसे अट्ठाईस की फ़रवरी
की हथेली पर
रख देता है कोई–कोई साल
उनतीसवां दिन…

4
इस वेलेंटाइन डे
नहीं कहूंगा
आई लव यू
नहीं दूंगा कोई महंगा तोहफा
उस दिन जब
ऑफिस से घर लौट कर
आओगी थकी–मांदी
ढेर सारा प्यार मिलाकर
बनाऊंगा तुम्हारे लिए
एक कप चाय

5
सुबह–सुबह
डाली पर खिले गुलाब देख
सहसा तुम याद आ गईं
याद आ गया फ़रवरी के वेलेंटाइन वीक का पहला दिन
यानी रोज़ डे
गुलाब उतने ही उल्लासित और निडर
जितनी कांटों से भरे जीवन के बीच
खिलखिलाती हुई तुम
अधखुली कलियां
जैसे झरोखे से आकाश निहारती तुम्हारी आँखें
मैंने सोचा तुम पास होती
तो ये सुर्ख गुलाब सप्रेम तुम्हें देता
मगर अब क्या…
मन मारकर
उन सुर्ख फूलों की फ़ोटो ली
और हैप्पी रोज डे के साथ
व्हाट्सएप कर दी तुम्हें
जवाबी संदेश में धड़कता हुआ दिल
एक मुस्कुराती इमोजी के साथ ख़ुद चला आया
मैं मुस्कुराया साथ ही फूल भी मुस्कुराए
जान बची तो लाखों पाए
ठंडी हवा के झोंके के साथ
फूलों ने
अपनी खुशबू से मेरे गाल सहलाए
मानो कह रहे हों
जीवन लेना नहीं बचाना प्रेम है…