पिता का हाथ: वंदना मिश्रा

प्रोफेसर वंदना मिश्रा
हिन्दी विभाग
GD बिनानी कॉलेज
मिर्ज़ापुर- 231001

पिता की मृत्यु हुई
और भाइयों में बंटवारा
वैसे मोहताज नहीं थे भाई बंटवारे के लिए

पिता की मृत्यु के
बंटने लगे थे बर्तन, रसोई, विचार
और परिवार की परिभाषा कटने लगी थी
पिता के रहते रहते

पर ढंग से दीवार उठी उनके बाद ही
इत्मीनान से नापी गई भूमि

और पिता की तरह मौन देखता रहा
बड़ा-सा जामुन का पेड़
पूरे एक कमरे की जगह घेरे खड़ा था
जाने कब से

इस तरह घर से जुड़ा था
कि उस मकान की कल्पना से भी अलग नहीं हुआ कभी

जैसे घर का मतलब
उस शहर का मतलब
सदैव होता था माँ मेरे लिए

पिता कभी काटने नहीं देते थे
एक डाल उस पेड़ की
कभी बिकने नहीं देते थे फल उस पेड़ के

भले ही मोहल्ले भर के बच्चों के पत्थर पड़ने लगे आँगन में

बहुत बड़ी होने पर एक लड़की ने पहचाना था मुझे
उस जामुन वाले घर से

पूरी गर्मियों की दुपहरी एक अनोखा खेल थी
हम सबके लिए

कट गया वह रसीले फलों वाला पेड़
और नम नहीं हुई किसी की आँखें
पिता की तरह निरीह लगा था पेड़ उस समय

एक बड़ा-सा कमरा बना उसकी जगह
बड़ा ठंडा
उस में बैठने पर कभी-कभी लगता है
जैसे बैठे हैं हम सब उसी जामुन के पेड़ के नीचे

जैसे पिता ने रख दिया हो सिर पर
अपना काँपता हाथ