ताबीज़: वंदना मिश्रा

प्रोफेसर वंदना मिश्रा
हिन्दी विभाग
GD बिनानी कॉलेज
मिर्ज़ापुर- 231001

किताबें खींचती थी मुझे
बचपन से

एक दिन
एक कनस्तर के नीचे रखी
सील के भी
नीचे रखी किताब
हल्की-सी दिख गई

सावधानी से निकाल
अभी पढ़ना शुरू किया था
कि गुस्से में माँ चिल्लाई
कहाँ से मिल गई तुम्हें ये किताब?
क्यों निकाली?
कहाँ हैं इसमें से निकला ताबीज़?
इतनी छुपा कर रखी किताब
दिखी कैसे तुम्हें?

इतने सवाल सुन कर
घबरा सी गई
तब तक माँ को मिल गया
ज़मीन पर गिरा ताबीज़
किताब छीन फिर रखा
उसमें ताबीज़ और
फिर दबा दिया उसी तरह

दीदी की शादी जल्दी तय होने के लिए
किसी पंडित जी ने ये उपाय बताया था

सहम के बैठी मुझे हँसाने के लिए
दीदी ने कहा -अच्छा किया निकाल दिया ताबीज़

शायद मुझे इसीलिए पेट में
कई दिन से दर्द हो रहा था

लड़कियाँ इसी तरह दबाई जाती हैं
सील के नीचे, विवाह के लिए
और विवाह के बाद भी

बाप के सीने पर
पत्थर की तरह पड़ी बेटियाँ
चाहती हैं जल्दी से जल्दी
मुक्त कर देना पिता को

अपने कलेजे पर पत्थर रख
खुश दिखना चाहती बेटियाँ
पत्थर होने तक