मौन के समक्ष: रक्षित राज

जब भी भाषा
मौन के समक्ष
बेबस हो
तो हमें अपने मौन को
चुम्बन में उड़ेल देना चाहिए

प्रेम का आरंभ सूर्योदय है
एवं अंत सूर्यास्त है
अतः प्रेम की दुपहरी में
स्वभावतः टिक पाता है
एक किसान
अतः हम कह सकते हैं
प्रेम पुरुष को कर्मठ बना देता है

प्रेम को होना चाहिए
धूप की तरह
जिससे विटामिन मिले
प्रकाश संश्लेषण हो
जो हर जगह पहुँच जाता हो
जब भी पड़ता है जिस्म के
किसी कोने पर
निखार ला देता है
उसे और ज्यादा प्रकाशित कर देता है

जब पड़ता है अकाल
तब खेत में दरारों के
साथ फटती है किसान की छाती
प्रेम में हमें हूबहू ऐसा होना चाहिए

-रक्षित राज
छात्र,बीएचयू