कभी-कभी: रूची शाही

रूची शाही

कभी-कभी मन होता है
इतने पैसे होते कि बिन सोचे खर्च देते
कल की चिंता न होती

कभी-कभी मन होता है
किचन में इतना कुछ होता है
कि क्या बनाना है सोचना नहीं पड़ता

कभी-कभी ये भी लगता है
कि तुमको मुझसे मुहब्बत भी होती
जरूरतों भर का बस रिश्ता नहीं होता

कभी-कभी मन सोचता है
मेरे अपने, सच में मेरे अपने होते
सौतेलेपन जैसा कोई बर्ताव नहीं होता

कभी-कभी ये भी लगता है
कि हम पागल हो जाते
याद नहीं कुछ रहता
भूले सब कुछ होते