ख़ुशी की चाहत- अतुल पाठक

ख़ुशी की चाहत आख़िर कौन नहीं रखता है
पर ख़ुशियों का हक़दार हर एक नहीं होता है

ज़िन्दगी के चौराहे पर इक मोड़ ऐसा भी आता है
जहाँ इंसान को ढेरों ग़म बटोरना पड़ जाता है

एहसास के समंदर में जब डूब जाता है
तब अतुल अतुल नहीं सागर बन जाता है

खुद से इक खेल करने लगता है
तन्हा है मगर मुस्कुराने लगता है

ज़िन्दगी का चलन धूप छाँव सा होता है
कभी ख़ुशी तो कभी ग़म साथ होता है

ख़ुशी की चाहत का दस्तूर यही होता है
क़िस्मत को मंज़ूर सब कुछ नहीं होता है

अतुल पाठक
हाथरस, उत्तर प्रदेश
संपर्क- 7253099710