किस उमंग संग मनाऊं बसंत: प्रार्थना राय

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश

किस उमंग संग मनाऊं बसंत
कि मन में है पीड़ा का अतिरेक
बसंत आगमन पर ही हुआ था
याद करो पुलवामा अटैक

मार्मिक अवस्था की व्याख्या
मुझसे की कभी नहीं जाती
मन मेरा व्याकुल हो उठता है
जब बसंत की रुत आती

उभर जाते हैं जख्म रह रह कर
समय भी भर सका न जिनको
हृदय में वेदना है गहरी कितनी
शायद ही तुम कभी समझ सको

नहीं भूलता वो दिन, जब
चिथड़े उड़ गए मेरे जवानों के
रक्तरंजित हुआ था देश कितना
नमक हरामों की चालों से

अवनि दहली अंबर रोया
छल्ली हो गए भारतवासी
आहत हो गई मांँ की ममता
आह लिए दर्द की सीमटी हिचकी

बच्चों की उम्मीद अधूरी
टूटा कंगन मिट गया सिंदूर
राखी का अब तागा रोती
यूं चला गया वो सबसे दूर

गृह जनपद निवासी हमारे
अमर शहीद विजय मौर्य
हुए न्योछावर जो पुलवामा में
प्रणम्य है सभी वीरों का शौर्य

खुशहाल रहो तुम जहाँ रहो
स्वीकार करो मेरा वंदन
हे भारत के अमर शहीदों
मैं करती शत-शत नमन

देश के लिए हमने फांदी
कितनी ही रक्त की सरिताएं
सूनो जंबुको तुमने जितने अंभ न देखे
उससे ज्यादा वीर रक्त बहाएं