एक शबनमी मुलाक़ात: विजय सावरिया

मन के हालात सुनाना है तुम्हें
तुम पास कभी बैठो तो सही
एक शबनमी मुलाक़ात सुनाना है तुम्हें
तुम पास कभी बैठो तो सही

बताना है तुम्हें इस केशों की खुश्बू को
जताना है कोई मन की ज़ुस्तज़ू को
ये गंगा का किनारा ये मासूम सी मुस्कान
मचलते अरमान सुनाना है तुम्हें, तुम पास कभी बैठो तो सही

तुम पर ये बादामी साड़ी, तुम्हारा रंग बादामी करती है
देख तुम्हारा ये चंचल चितवन लम्हा नूरानी करता है
चित में बसी ये सूरत तुम्हारी, मनमंदिर में मूरत तुम्हारी
तुम्हारी इन आँखों का काजल प्रेम निशानी करता है

झुकी झुकी इन पलकों में बात तो कोई गहरी है
देखे कोई ये रंगत तुम्हारी स्वर्ण से भी सुनहरी है
यूँ ही हमसे कभी कभी मुलाक़ात किया करो तुम भी
दिल को जो सुकून से भर दे ऐसे सबालात किया करो तुम भी

मन के हालात सुनाना है तुम्हें
तुम पास कभी बैठो तो सही
एक शबनमी मुलाक़ात सुनाना है तुम्हें
तुम पास कभी बैठो तो सही

विजय सावरिया