तेरी कमी: रूची शाही

न तुझसे अलग हूँ न मैं जुदा हूँ
तेरी सादगी हूँ मैं तेरी अदा हूँ
कहाँ दूर हूँ मैं, तू महसूस तो कर
तू मुहब्बत है मेरी मैं तेरी वफ़ा हूँ

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फिर वही खता नहीं करना
हो सके तो राब्ता नहीं करना
दर्द जितने भी हैं काफी हैं
अब कोई ग़म अता नहीं करना

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मुझे कोई क्या समझेगा, मैं उलझी हुई पहेली हूँ
सभी के साथ रहकर भी, मैं बस तन्हा अकेली हूँ
करूँ शिकवा तो किससे, सभी अपने, बेगाने हैं
दुखों ने मुझको पाला है, व्यथा की मैं सहेली हूँ

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मुझसे ज्यादा, कोई और उसे भाता है
उसका चेहरा मुझे गैरों में नजर आता है
बेशक कोई रस्मो-राह न रहा हो उससे
मगर ये दिल उसी की राह चला जाता है

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ये जो आँख मेरी छलकी छलकी सी रहती है
तुमको क्या बतलाऊँ इसमें कितनी नमी रहती है
सारे सुख, जीवन एक तरफ मैं रख देती हूँ
और एक तरफ मुझको बस तेरी कमी रहती है

रूची शाही