नव उम्मीदों के गगन में: प्रार्थना राय

गा रही रात सुहानी
भोर के मधु गीत को
घोलती है तन में मेरे
आभा के अगणित रंग को

जुड़ गया संबंध तुमसे
राग और रागिनी सा
बांध गया डोरी प्रिये
हृदय पट के छोर से

देवों से बन के प्रियतम
मरु जीवन में आये
बरसे तुम रसधार बनकर
प्राण बन उर में समाये

चहक उठी लालसाएं
प्रियतम तेरे प्यार से
फिर से संवरी मैं प्रिये
तेरे कोमल स्पर्श से

श्वासं के गान में
नाम तुम्हारा रच गया
सौभाग्य से सुसज्जित
जीवन मेरा सज गया

भावना के दीय में
बाती बन, तुम जल उठे
पथ के सारे पत्थर
तेरे आगमन से चंदन हुए

प्रेम के श्रृंगार से
सफल मेरा जीवन हुआ
प्रीत की नैया में
दो प्रेमी हम चलें

नव उम्मीदों के गगन में
बसंत बन हँसते रहो
रूप मंजरियों का लेकर
मैं सदैव खिलती रहूं

झूम रहा मदमस्त गगन
थिरक रही है धरा
अनंत संबंध हमारा
नखत बन झलक उठा

प्रेम भावना से सुरभित
जीविका का हो सहारा
पावन पूज्य तेजस्वी अरुण
स्नेह की तुम हो लालिमा

प्रार्थना राय
ग्राम पोस्ट- गौरा
जनपद- देवरिया, उत्तर प्रदेश