सावन की रुत: कृष्ण गोपाल सोलंकी

रिमझिम-रिमझिम बादल बरसे पवन चले पुरवाई,
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई

आसमान पर काले बादल मस्तक तिलक लगाते हैं,
इंद्रधनुष के सातों रंग करके शृंगार सजाते हैं
नदियाँ कलकल साज बजाएं हवा करे अगुवाई
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई

दादुर, मोर, पपीहा बोले झूमें रुत मतवाली,
पंचम स्वर में कोयल गाये बैठ आम की डाली
बरखा रानी तीजों के फिर अंजुली भरकर लाई
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई

हर्षोल्लास मनायें सारे इस रुत के आवन की,
पीपल पर भी भीड़ लगी है झूल पड़ी सावन की
छोटे बच्चों ने ‘गोपाला’ कागज़ की नाव बनाई
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई

रिमझिम- रिमझिम सावन बरसे पवन चले पुरवाई, 
भारत का अभिनदंन करने सावन की रुत आई।

कृष्ण गोपाल सोलंकी