निःस्वार्थ आँसू- सीमा कृष्णा

आँसू तू कितनी मासूम, बेदाग़ है,
निष्पाप, निश्च्छल है,
निःस्वार्थ ही हर हाथ थाम लेती है तू,
कोई साथ हो, ना हो
थामने इन हाथों को तू जरूर आ जाती है,
जैसे ही दिल पर कोई अनचाहा सा बोझ हो,
उतारने उसे तू आ जाती है
आँखों में धूल चली जाए,
धोने इन आँखों को तू आ जाती है
जैसे ही मन पर जमने लगे मैल कोई
वैसे ही मन की सफाई करने तू आ जाती है

कभी-कभी ये सोचती हूँ,
आँसू तू न होती तो क्या होता
ना मन की सफाई होती,
ना दिल का बोझ उतरता,
ना आँखों का धूल धुलता,
ना दुःख का भार कम होता,
ना इन हाथों को कोई यूँ ही निःस्वार्थ ही थामता

.कमज़ोरी की है निशानी तू, ये कहता कौन है?
जो तेरी कीमत न समझे उसे मूर्ख न कहूँ तो क्या कहूँ मैं?

मैं जो देखूँ कि,
मुझमें फिर से इक नया उत्साह भर देती तू,
मेरी धुँधली हुई नज़रों को नई चमक देती तू,
मुझे निष्पाप और बेदाग़ करती तू,
मेरे निष्पाप, बेदाग़ होने के स्वार्थ को
निःस्वार्थ ही कर जाती तू

सच..
आँसू तू कितनी मासूम, बेदाग़ है,
निष्पाप, निश्च्छल है
निःस्वार्थ ही सब कर जाती है

-सीमा कृष्णा