पथ के शूल कुचलता चल: स्नेहलता नीर

स्नेहलता नीर
उत्तराखंड

जीवन की राहें अनजानी, निशि-दिन राही चलता चल
मार्ग कंटकाकीर्ण मिले तो पथ के शूल कुचलता चल

मंजिल तेरी दूर, मगर रख प्यास लक्ष्य को पाने की
दृढ़ रहना तू लोग करेंगे कोशिश पथ भटकाने की
होंगी सब प्रतिकूल दशायें, सबको यहां बदलता चल
मार्ग कंटकाकीर्ण मिले तो पथ के शूल कुचलता चल

साथ न देगा तेरा कोई, तोड़ेंगे सब सपनों को
ढूँढ़ सकेगा नहीं कभी तू अपनों में ही अपनों को
पग-पग पर छल की ठोकर से, गिरता और संभलता चल
मार्ग कंटकाकीर्ण मिले तो पथ के शूल कुचलता चल

फूल खुशी के कभी मिलेंगे, नहीं दम्भ से भर जाना
दुख के आंसू मिलें अगर तो नहीं साथ में बह जाना
सुख-दुख में समभाव रहे तू, समदर्शी में ढलता चल
मार्ग कंटकाकीर्ण मिले तो पथ के शूल कुचलता चल

जीवन नैया डगमग डोले, तनिक कभी मत घबराना
प्रभु का सुमिरन, आस दीप ले, भवसागर से तर जाना
रिश्तों के सब फर्ज निभाकर, हँसते हुये टहलता चल
मार्ग कंटकाकीर्ण मिले तो पथ के शूल कुचलता चल