Saturday, January 4, 2025

महेश कुमार केशरी की कविताएं

महेश कुमार केशरी
C/O -मेघदूत मार्केट फुसरो
बोकारो झारखंड
पिन -829144
[email protected]

रौशनदान

रेत ढोती माँ के खुरदरे थे हाथ
ईंट ढोते बाप के हाथ और पैर दोनों
खुददरे..थे

बाप का नाम था ददुआ
माँ का नाम विमली..
इन नामों में भी खुदरापन था
डेगची में पकती भात और
और तसले का निचला हिस्सा भी खुरदरा और
काला था

डेगची काली थी
और भविष्य भी
ये कालापन जैसे सदियों से उसका पीछा कर रहे थे

एक स्कूल था वो भी काला था
उसकी दीवारें और छत भी
काली थी
बेंच का रँग भी काला था
ब्लैकबोर्ड का रंग भी काला था
यहाँ तक की स्कूल के टीचर
का कोट भी काला था
कालापन जैसे उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहे थे
तभी उसे दिखा उस स्कूल के कमरे
का रौशनदान जिससे झाँक रही थी पीली
सफेद रौशनी..
जिसके ठीक नीचे था काले
रँग का ब्लैकबोर्ड जिसपे लिखी
इबारत सफेद थी
उसके हाथ में थी किताब
जिसके शब्द काले थे
उस किताब पर रौशनदान से झरती रौशनी
ये बता रही थी
हर काले के बाद कुछ
सफेद होना है..!

धान फटकती स्त्री

स्त्री सबसे पहले उठती
है, इस धरा पर
और उठकर झाडू
बुहारू करती है

फिर बर्तन बासन माँजती है
बर्तनों के खटपट और
शोर से जागता है,
सूरज

धान फटकती स्त्री
फटक रही होती है
बलाओं और बीमारियों को
वो झटक रही होती है
दु:खों को..

बर्तन माँजती
स्त्री माँज रही होती है
परिवार को..
वो माँज रही होती
है, घर के लोगों का
का फीका पड़ा आत्मविश्वास

उपले पाथती स्त्री
सेंक रही होती है
धूप को…

अल्पना लगाती स्त्री
रंग रही होती है
धरती..सजा रही होती
है, धरा को

चूल्हे पर आग जलाती स्त्री
भर रही होती है
घर का पेट

तवे पर सेंककर रोटियाँ

ताले में बँद दुनिया

मैं इसी दुनिया में एक
घर बनाना चाहता हूँ
जिसके अँदर
हमेशा, जिंदा रहें
संवेदनाएँ…
जिसमें रहते हों
वैसे लोग,
जो मिलते-जुलते रहते हों
आपस में और
हमेशा पूछते रहते हों एक-दूसरे का
हाल
जो किसी के रोने पर ठिठक जाते हों
जो आते हों अपना सब काम-धाम छोड़कर
किसी के मर जाने पर
और अर्थी के साथ-साथ चलते हों

या.. वो समय निकाल लेते हों
जब किसी के बेटी का ब्याह
हो रहा हो..

या गाँव में कहीं बन रही हो कोई
सड़क जिसमें अपना श्रमदान कर आयें..

अब चीजें सचमुच बर्दाश्त से बाहर
हो रहीं हैं
इस दुनिया के उस घर में लगाना
चाहता हूँ
एक ताला
और हमेशा के लिए बँद
करके रखना चाहता हूँ , ऐसे लोगों को
उस घर में
ताकि लोग
अपनी दिन-दुनिया में इतने व्यस्त
ना हो जायें..
कि इस दुनिया
के लोगों की तरह
एक-दूसरे की सुध लेने
का थोड़ा सा भी
वक्त ना बचा हो उन लोगों के पास !

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