हजारों ख्वाहिशों की तपिश में जलकर
चमकते चांद की, चांदनी अधूरी रह गई
तड़प उठी सीने में मेरे छुपी रही बरसों तलक
एक वो मेरा दिल, जिसकी प्यास अधूरी रह गई
बुलबुले उठते ही रहे यूं स्वप्नों के मोहजाल में
चले बहुत संभलकर फिर, भी कोशिशें अधूरी रह गई
लब हुए हैं यूं खामोश मेरे, नयन दोहराते हैं अब
जो कह ना पाई घायल मन की बात अधूरी रह गई
चूड़ियों की खनक मेरे हाथों की मेहंदी भी थी सुर्ख
उस पर भी मेरी पायल की झंकार अधूरी रह गई
पहाड़ों के सीने से गिरकर झरने की ये मोती सी बूंदें
ओस से टपकती दूब की वह ठंडक अधूरी रह गई
खो जाती है अपनी परछाई भी, अक्सर जिस स्याह रात में
मेरा चांद अधूरा इसकी अमावस, पूर्णमासी अधूरी रह गई
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश