जागे बिना रातों को समझे कौन क्या है जागना
जब ख्य़ाल सोने ही न दे, मुमकिन न होता टालना
कैसे खुले ही रह गए दरवाज़े दिल के रात-दिन
अब दर्द आकर बस गया, हर रोज़ उससे सामना
इतना धड़कता दिल मिला बेचैन तो होना ही था
बहते गए दरिया बने, आसां नहीं है बाँधना
पूरी करोगे रस्म तो दुनिया रहेगी खुश सदा
होना ही दिखता है छुपी रहती है दिल में भावना
देखो ख़ुदा जो रूठ जाए, मान भी तो जाएगा
इंसान का दिल टूटकर जुड़ता नहीं है जानना
हर चीज़ है बदली हुई ना रंग वो ना रूप है
अच्छा लगा करता बहुत बीते दिनों में झांकना
सच्चा सुख़नवर तोड़ता है फूल किसके बाग़ से
शब्दों की खेती में जलाता दिल यही है साधना
अंजना वर्मा
ई-102, रोहन इच्छा अपार्टमेंट,
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