अविनाशी तो वह रुक्मणि थी और ना ही थी वह राधा
फिर भी कृष्ण के बिन उसका जीवन था आधा
बिन उसके वह ऐसे घूमे दर-दर जैसे कोई अनाथ
ऐसी मीरा ने प्रीत लगाई, कृष्ण ने हर पल थामा हाथ
नहीं था कोई लोभ उसे न थी दुनिया की परवाह
आन बसे कृष्ण नैनन में बस इतनी सी थी चाह
धन्य हो गया जीवन उसका इतना सा था स्वार्थ
ऐसी लागी लगन संग मोहन हर पल थामा हाथ
नहीं चिंता थी किसी बात की जब था मोहन का साथ
हंसकर पी गई विष का प्याला कैसे हो जाती निष्प्राण
मीरा सा कहीं प्रेम न भक्ति सुनो ध्यान धर यह बात
इस प्रीत की खातिर ही उसने छोड़ दिए सब राजपाट
ह्रदयपुंज के दीपक में बाती बन प्रेम की जलती थी
रोम रोम कान्हा की मुरली की धुन मिश्री सी घुलती थी
जीवन था मधुबन सा कृष्ण भक्ति चंदन सी महकती थी
संसार कहे पगली दीवानी, मीरा बेपरवाह भटकती थी
कहते हैं मीरा कृष्ण प्रेम क्या है? आज तुम्हें बतलाती हूं
जहां न स्वार्थ तनिक मात्र भी उस प्रेम का सार बताती हूं
मीरा सी निश्चलभक्ति प्रेम का दुनिया क्या मोल कर पाती है
त्याग दिया सब जिस की खातिर उसको क्या समझ पाती है
स्वार्थ रहित मीरा की भक्ति हर चाहत से बेगानी है
सत्य सरल अविचल अविनाशी निश्छल प्रेम कहानी है
यदि प्रेम की सार्थकता पूछो तो मीरा ही वह निशानी है
ऐसी प्रीत करी मोहन संग युगों तक अमर यह दीवानी है
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश