राह के पत्थर सभी अपनी ठोकर में थे
हमसफ़र बन साथ जब तुम सफ़र में थे
सारे हँसी नजारे तुम्हारी नजर में थे,
इन सबसे बेखबर तुम मेरी नजर में थे
तुम्हारी आँखों में दिखी अपनी झलक हमें,
उस पल यूँ लगा कि हम अपने घर में थे
सारा सुकून सारा करार हम को मिला वहाँ,
कुछ देर थम के बैठे जिस खंडहर में थे
बारिश की बूँदों ने भी अठ्खेलियाँ करीं,
बादल हमारे साथ इसी रहगुज़र में थे
अठखेलियाँ नादानियाँ शैतानियाँ भी कीं
जी लिया वो दौर जब बाली उमर में थे
तन्हाइयों से दोस्ती जब भी कभी हुई,
तुम्हारी याद के चर्चे शामो सहर में थे
मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी,
केवलारी, सिवनी,
मध्य प्रदेश