ये सन्नाटे खामोश नहीं हैं
इसमे चीखे गूँज रही हैं
मौत की दहलीज पर खड़े जन की
इसमे डर बड़बड़ा रहा है
अप्रिय घटना के अन्देशा का
इसमे यादें रो रही हैं
अपने से दूरियों की
इसमें फिक्र बुदबुदा रही
अपनी और अपनों के सेहत की
इसमे चिंता रो रही है
उत्पन्न बेरोजगारी की
इसमें आंतडी रो रही है
भूखे पेट वालोँ की
इसमें असमान गरज रहा
आफत आवास ना होने वालों की
इसमे प्रार्थनायें बज रही है
सब जल्दी ठीक होने की
-नेहू शब्दिता