सुप्रसन्ना झा
यह शांत सुंदर राह
जैसे एक विश्वास दिलाता हुआ
सब अच्छा होगा
परिवर्तन तो प्रकृति का
जैसे एक नियम है
कभी धूप तो
कभी गुनगुनी सी छांव है
वक्त के तपिश को
जो हंस कर झेल लेते हैं
वही जिंदगी में आंसुओं को
मुस्कुराहट में तब्दील कर पाते हैं
रास्ते तो महज रास्ते हैं
कभी काटे तो कभी फूलों से भरे
इत्तेफाक से हम सभी मात्र इक
यात्री हैं इन राहों के जिसमें
सबको अपनी-अपनी भूमिका निभाते
एक दिन चले जाना है इस संसार से
सदा सदा के लिए