लेखिका या स्त्री के लिखने की पहली अनिवार्यता लिखने की स्वतंत्रता है: चंद्रकला त्रिपाठी

विख्यात आलोचक व कथाकार चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा कि लेखिका या स्त्री के लिखने के लिए पहली अनिवार्यता लिखने की स्वतंत्रता है। आकांक्षा पारे काश‍िव की कहानियां अवारा व बड़ी पूंजी के खतरे से आगाह करती हैं। कहानियों में वर्तमान है और वे समय से मुठभेड़ करती हैं। वे पहल एवं सविता कथा सम्मान समिति के संयुक्त तत्वावधान में आज रानी दुर्गावती संग्रहालय की कला वीथ‍िका में द्वितीय सविता कथा सम्मान समारोह में मुख्य वक्तव्य दे रही थीं।

इस अवसर पर चंद्रकला त्रिपाठी ने द्वितीय सविता कथा सम्मान दिल्ली की कथाकार व आउटलुक हिन्दी की सहायक संपादक अकांक्षा पारे काशिव को प्रदान किया। सम्मान के अंतर्गत अकांक्षा पारे काश‍िव को ग्यारह हजार रूपए की सम्मा‍न निध‍ि,  स्मृति चिन्ह व प्रशस्त‍ि पत्र भेंट किया। कार्यक्रम में सांस्कृतिक चेतना की संवाहक पत्रिका ‘अन्व‍िति’ के प्रथम अंक लोकार्पण भी होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रसिद्ध आलोचक डॉ स्मृति शुक्ला ने कहा कि अकांक्षा पारे काश‍िव की अधिकांश कहानियों की मुख्य किरदार साहसी स्त्रियां हैं।साहसी स्त्रियों के संघर्ष सकारात्मकता संदेश देते हैं।

अकांक्षा पारे काश‍िव ने अपनी रचना प्रक्रि‍या पर वक्तव्य देते हुए कहा कि जबलपुर उनकी जन्म स्थली है और यहां सम्मानित होना उनके लिए उपलब्धि है। उनके लिए यह पुरस्कार नहीं बल्कि आत्मीय बुलावा है। उन्होंने कहा कि कहानी लिखना उनके लिए अतीत के टुकड़ों को व्यवस्थित ढंग से जोड़ना है। कहानी लिखना उनके लिए किस्सागोई है। कहानी लिखते वक्त उनके भीतर की नानी जाग्रत हो जाती है। अकांक्षा पारे काश‍िव ने कहा कि परिवार के संस्कार ही रचनाकार के संस्कार होते हैं।