अमर शहीद क्रांतिकारी बाबू बन्धू सिंह: प्रार्थना राय

भारतीय इतिहास के कई ऐसे महान क्रांतिकारी हुए हैं, जिन्हें या तो भुला दिया गया या फिर वो इतिहास की किताबों से ओझल हैं। फिर भी हम उनके बलिदान का कर्ज चुका नहीं पायेंगे। मैं बात कर रही हूं अमर शहीद बाबू बन्धू सिंह के बारे में, जिनका जन्म 1मई 1833 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद थाना चौरीचौरा डुमरी रियासत के बाबू शिव प्रसाद सिंह के क्षत्रिय परिवार में हुआ था। वे पांँच भाई थे दल हम्मन सिंह, तेजाई सिंह, फतेह सिंह, जेनेक सिंह और करिया सिंह।

वे सभी तरकुलहा मांँ के भक्त थे। डुमरी रियायत के जंगल में बाबू बन्धू सिंह के द्वारा एक तरकुल के वृक्ष के नीचे देवी माँ की पिन्डी स्थापित थी, वे प्रतिदिन देवी मांँ की उपासना करते थे। बाबू बन्धू सिंह को गोरिल्ला युद्ध में ख्याति हासिल थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश के महान क्रान्तिकारी बाबू बन्धू सिंह के नाम 1857 स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्ति में अहम भूमिका निभाने का श्रेय जाता है।

अंग्रेजों के उनके नाम मात्र से ही छक्के छूट जाते थे, वे बाबू बन्धू सिंह के नाम से भयभीत हो जाते थे, बाबू बन्धू सिंह अंग्रेजों के अत्याचार से बहुत आहत हुए एवं उनके हृदय में स्वाधिनता की लालसा उत्पन्न हुई। वे अंग्रेजों के रवैये से बहुत आक्रोशित थे और उम्र बढ़ने के साथ उनके भीतर क्रान्ति की ज्वाला जागृत होने लगी।

उस समय उनकी आयु 24 वर्ष की थी, जब 1857 ब्रिटिश शासन के विरोध में जनता का आक्रोश के चरम पर था, जिसकी अगुवाई बाबू बन्धू सिंह ने की। जब उनकी रियासत आकाल के भयंकर चपेट में आई तो उन्हें ये बात खटकने लगी कि हम अपने ही देश में अपनी ही सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं और वही अंग्रेज ऐशो-आराम में लीन हैं, उन्होंने अपने साथियों की सहायता से एक साहसिक कदम उठाया बिहार से लदकर आ रहे सरकारी खजाने को लूटकर आकाल ग्रस्त क्षेत्रों में बांट दिया, इस घटना में गोरखपुर के कलेक्टर भी मारे गये। 
इसके बाद घाघरा और गंड़क नदी पर अपना अधिकार स्थापित कर अंग्रेजों के आवागमन एवं माल पहुंचाने वाले पुल को तोड़ दिया। अंग्रेज उन्हें डाकू बन्धू सिंह कहने लगे। बाबू बन्धू सिंह को पकड़ने के लिए फिरंगियों ने नेपाल के राजा से सहायता ली, नेपाल राजा ने अपने प्रधान सेनापति पहलवान सिंह के साथ सैनिक बल भेजा। वे बन्धू सिंह को पकड़ने में जुट गए। दोनों पक्षों के बीच भयंकर मुकाबला हुआ, जिसमें पहलवान सिंह मारा गया। अब अंग्रेजों के निशाने पर बाबू बन्धू सिंह आ गये, जिसके बाद वे जंगल में रहने लगे तथा वहीं ताड़ वृक्ष के नीचे स्थापित देवी पिण्डी की पूजा अर्चना करने लगे। 

इधर अंग्रेजो का गुस्सा और बढ़ गया तथा डुमरी रियासत पर हमला कर बाबू बन्धू सिंह की हवेली को आग के हवाले कर दिया गया। बाबू बन्धू सिंह के भाईयों ने अंग्रेजों से डटकर लोहा लिया, अंत में वे सभी वीरगति को प्राप्त हुए। सबसे बड़ी बात ये कि हम आर्यपुत्र कभी किसी विदेशी से पराजित नहीं हुए, यहाँ तो अपनों ने ही मुखबिरी कर धोखा दिया, बाबू बन्धू सिंह के भाईयों के शहीद होने के बाद डुमरी रियासत को उपहार स्वरुप मुखबिरों में बाँट दिया गया।

दूसरी ओर बाबू बन्धू सिंह जंगल में रहने को विवश हो गये और देवी की उपासना करने लगे। वे प्रतिदिन अंग्रेज सैनिकों की बलि देवी माँ के चरणों में भेंट देते थे और लाशों को कुएं में  डाल कर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते थे। दिन-ब-दिन सैनिकों के लापता होनें से अंग्रेज अचंभित हो घबरा उठे। जिसके बाद मुखबिर तंत्र को सक्रिय कर पता लगाने में जुट गये, अतंतः अपनों की चाल से वे पकड़े गये।

अतः बाबू बन्धू सिंह को कोर्ट में पेश कर 12 अगस्त 1857 अंग्रेजों के द्वारा गोरखपुर के अलीनगर चौराहे पर विशालकाय वृक्ष पर सार्वजनिक तौर पर फाँसी देने का ऐलान हुआ। आश्चर्य की बात ये है कि अंग्रेज उन्हें छह बार फाँसी देने में असफल हुए एवं अंग्रेजों के पसीने निकल आये और बार-बार प्रयास करने के बाद भी फाँसी का फंदा टूट जाता था। सातवीं बार जब क्रान्तिकारी बन्धू सिंह के गले में फाँसी का फंदा डाला गया तो उन्होंने अपनी आराध्य देवी मांँ से विनती की, कि हे माँ अब हमें मुक्ति दो, इसके बाद अंग्रेज अपनी मंशा में सफल हुए।

उधर फाँसी लगते ही यहाँ जंगल में स्थित देवी माँ की पिण्डी के समीप तरकुल के वृक्ष का ऊपरी हिस्सा टूट कर गिर गया और रक्त प्रवाह होने लगा, यह स्थान तरकुलहा माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ एवं आज भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है। देवी के मंदिर के निकट अमर शहीद बाबू बन्धू सिंह जी का शहीद स्मारक स्थित है ।

यहाँ प्रति वर्ष नियमानुसार माता का जगराता एवं उत्सव का आयोजन होता है।माता की महिमा और अमर शहीद बाबू बन्धू सिंह की वीरता की कहानी हम क्षेत्रवासियों को मुंहजबानी याद है। हमें स्वतंत्रता बहुत कठिनाइयों के बाद मिली हम ऋणी हैं ‘अमर शहीद बाबू बन्धू सिंह श्रीनेत’ के जिन्होंने अपने खून से आज़ादी की दास्तां लिखी, क्रान्ति के कुंड में अपने प्राणों की आहुति देकर हमें जीवन दान दे दिया।

यूँ तो पूर्ववर्ती सरकारों ने महान क्रांतिकारी बाबू बन्धू सिंह को भुला सा दिया था, लेकिन गोरखपुर के तत्कालीन सांसद और उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाबू बन्धू सिंह के 150वें बलिदान दिवस के अवसर पर 12 अगस्त 2008 को अलीनगर चौराहे पर अमर शहीद बाबू बन्धू सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया तथा शहर के मोहद्दीपुर में अमर शहीद बाबू बन्धू सिंह के नाम से सिंह पार्क का निर्माण कराया।

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश