त्रिसुगंधि साहित्य, कला एवं संस्कृति संस्थान राजस्थान का सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी आयोजित

त्रिसुगंधि साहित्य, कला एवं संस्कृति संस्थान पाली राजस्थान के तत्वावधान में आयोजित श्री रतनलाल शर्मा अजमेर एवं श्री शिवचंद ओझा ओसियां की स्मृति सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन विज्ञान समिति उदयपुर में किया गया। जिसमें उदयपुर और चित्तौड़ के जाने-माने कवियों ने शिरकत की।

कार्यक्रम में देश के जाने-माने वीर भूमि चित्तौड़ के कवि वरिष्ठ गीतकार रमेश शर्मा को श्री रतन लाल शर्मा अजमेर साहित्य शिरोमणि सम्मान से सम्मानित किया गया। कवि रमेश शर्मा ने अपने गीतों से पूरे सदन को मंत्र मुग्ध कर दिया। उनके सारे गीत एक से बढ़कर एक थे, मैं गीत जिसके गाता हूँ एक आम सी लड़की थी, उहापोह से निकले हुवे परिणाम सी लड़की थी, गीत पर सभी श्रोता झूमते हुवे कवि के स्वर से स्वर मिला कर गुनगुनाने लगे, उन्होंने तीन गीत प्रस्तुत किये तीनों गीतों की श्रेष्ठता पर एक-एक श्रोता वाहः वाहः करता रहा।

उन्हें साफ़ा, शॉल, उपरणा, स्मृति चिन्ह व सम्मान राशि भेंट कर संस्था ने उनको त्रिसुगंधि साहित्य- शिरोमणि सम्मान से मंच सहित ट्राइबल एरिया डवलपमेंट के डिप्टी डायरेक्टर जितेंद पांडेय ने सम्मानित किया।

संस्था ने उदयपुर निवासी देश के जाने माने कथावाचक विरिष्ठ साहित्यकार गीतकार पंडित नरोत्तम व्यास को शिवचंद ओझा ओसियाँ स्मृति त्रिसुगंधि साहित्य-गौरव सम्मान से शॉल, साफा, उपरणा, स्मृति चिन्ह व सम्मान राशि से सम्मानित किया गया। आपके अद्भुत गीतों का रसास्वादन करते हुवे सभी श्रोता भाव विभोर हो उठे, जब उन्होंने अपने सुमधुर कंठ से अपने गीत सुनाये, “बादलों ने जब जल परोसा मनुहार से धरती पत्तल हो गई पेड़ दौने हो गये..

उदयपुर शहर के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार पुष्कर गुप्तेश्वर को उनके समग्र लेखन के लिये उनको श्री शिवचन्द ओझा ओसियाँ स्मृति साहित्य गौरव सम्मान प्रदान किया गया। बाल साहित्यकार नंद किशोर निर्झर चित्तौड़गढ़ को उनके समग्र लेखन के लिये साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। तरुण दाधीच को उनके समग्र साहित्य लेखन के लिये साहित्य रत्न सम्मान से, अरुण त्रिपाठी अजमेर को उनके समग्र साहित्य लेखन के लिये साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।

उदयपुर नगर के संगीत जगत के सम्राट कहे जाने वाले जगत प्रसिद्ध संगीतकार ग़ज़ल गायक व लेखक प्रेम भंडारी जी का संस्थान ने कला जगत में दिये जा रहे उनके अविस्मरणीय योगदान हेतु उनको कला रत्न सम्मान से सम्मानित किया।

साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती विजय लक्ष्मी देथा उदयपुर, वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती करुणा दशोरा उदयपुर, वरिष्ठ साहित्यकार शैलेन्द्र ढड्ढा जोधपुर, ग़ज़ल के युवा व सशक्त हस्ताक्षर नितिन मेहता मौलिक को साहित्य श्री सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया।

उदयपुर शहर के जाने माने चित्रकार, रंगकर्मी, साहित्यकार चेतन औदीच्य द्वारा हाल ही में जयपुर जवाहर कला केंद्र में लगाई चित्र प्रदर्शनी को भारत भर में मिली सराहना के लिये संस्थान द्वारा चेतन औदीच्य का अभिनंदन किया गया। डॉक्टर कुंजन आचार्य द्वारा चेतन औदीच्य की प्रदर्शनी, व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया।

कार्यक्रम में अरुण त्रिपाठी ने “उन ढलानों पर चलकर आज तो तू है खुश बहुत, पर कल शायद सामने तेरे बस घाटियां रह जायेगी। गले लगाये हुए थी सुनो वो माँ अपने बेटों को, पर मुसीबत के वक्त पास सिर्फ बेटिया रह जायेगी” सुना कर प्रत्येक व्यक्ति को वाह-वाह करने को मजबूर कर दिया। डॉक्टर करुणा दशोरा ने मायड़ बोली मेवाड़ी में “बळ रै दिवळा बळ रै, बळ नै थूं भरदे हिय मे हुलास। सुनाकर खूब तालियां बटोरी।

डॉ तरुण दाधीच ने ये तेरी आंखें गहरा समंदर है,इनमें कई उफनती नदियों का नीर है सुनाकर सदन से खूब दाद हासिल की। दीपा पंत शीतल ने “अक्सर ढूंढती हूं मैं चमक दीप सी और पा लेती हूं इसे, सुनाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। वहीं डॉ प्रियंका भट्ट ने ओ कान्हा इक बार पुनः अवतार धरण कर आओ, भूल गयी जो ये दुनिया वो गीता ज्ञान कराओ संसार में, इन दिनों हुई भटकाव की स्तिथि को पुनः संभालने को श्री कृष्ण को धरती पर पुनः अवतरित होने का अनुग्रह किया।

महेंद्र शाहू ने अपनी रचना दिल चाहे बनके सूरज, दूर अँधेरा कर दूँ। बहुत ही मीठे तरन्नुम में सुनाकर सभी को आह्लादित कर दिया।
शैलेन्द्र ढड्ढा ने
तेरे पिता
मेरे पिता
सबके पिता एक ही तो है
पिता एक ही तो होता है
पिता जैसा
धीर-गंभीर
कर्तव्य की सलीब उठाए
परंपरा और संस्कार की जीवंत मूर्ति
रक्षक भी
तारक भी
जिसका मौन भी बोलता बस कोई पढने वाला चाहिये
अक्सर बेटियां पढ लेती है बेटे नहीं पढ पाते हैं, सुनाकर सबका मन भिगो दिया।

चेतन औदीच्य ने “जरूरी तो नहीं, युद्ध के विरुद्ध किया ही जाए युद्ध, बिखेरे जा सकते हैं रंग धता बताते बारूद को।” कविता पढ़ कर संसार में युद्ध के ख़िलाफ़ रंग बिखेर कर विश्व भाईचारा व प्रेम के नर्म बीज बोने का एक सुंदर विचार अपनी कविता के माध्यम से रखा।

“संज्ञान है तुम्हें, केशव!
महसूस होता है मुझे
तुम संग रहकर कि
मैं विलग हूं इस संसार से”
कविता पढ़ती हुई किरण बाला किरण सभी को कृष्ण की भक्ति व प्रेम के रस में डुबो ले गई।

दीपक नगाइच रोशन ने ग़ज़ल ज़ख़्म जो उसने दिए हैं प्यार से, वो मुनासिब ही नहीं तलवार से व अन्य ग़ज़ल पढ़कर खूब दाद हासिल की। डॉ सिम्मी सिंह ने “ख्वाहिशों की फेहरिस्त बहुत लंबी थी मगर इक तू जो मिला तो सुकून ए तसल्ली हो गई” सुनाकर सबको तालियां बजाने को बाध्य कर दिया। नीरज कबीर जायसी, ले इनसे आशीष। रच जायेंगे ख़ुद-ब-ख़ुद, छन्द नये जगदीश।”
जैसे श्रेष्ठ दोहे अपनी दमदार आवाज़ में सुनाकर डॉक्टर जगदीश तिवारी ने समां बांध दिया।”

अपने बेहतरीन तरन्नुम में
कभी कश्ती की हलचल से
ज़रा
भी खौफ़ मत खाना,
अगर हो साथ माझी तो
दिशाएं मिल ही जायेगी।
सुनाकर मधु अग्रवाल ने खूब तालियां बटोरी।”

“मैं हूं सृष्टि का आधार” मां जब कह के पुकारा पुरुष ने गौण हो गए सारे नाते।
इतनी श्रद्धा इतना महान पुरुष कहां है पाते।।
बनकर मां मैंने जाना, अनुश्री राठौड़ ने स्त्री विमर्श पर अपनी दमदार प्रस्तुति दी।

चित्तौड़ से पधारे वरिष्ठ कवि साहित्यकार नंद किशोर निर्झर ने अपनी बेहतरीन रचनाओं से सदन को नवाजा मसलन
रात भर दीपक जलता रहा ।।
अंधेरा अपने हाथ मलता रहा ।।

युवा ग़ज़लकार नितिन मेहता मौलिक ने-
“वो जो कल तक निकलते थे कमाँ से
वही तीर अब निकलते हैं ज़बाँ से
ग़ज़ल जब अपने नये अंदाज में सुनाई सारा सदन तालियों से गूंज उठा शायर को भरपूर दाद मिली।

कवि महेंद्र साहू ने “दिल चाहे बनके सूरज, दूर अँधेरा क रदूँ। जैसा उजास भरा गीत गाकर सारे सदन की खूब दाद हासिल की। श्रेणीदान चारण ने ए मां तेरी ममता का कोई छोर न हीं मिलता, विजय लक्ष्मी देथा ने ज़िन्दगी के अनंत रूपों का आंकलन करती रचनायें सुनाकर बहुत वाहवाही बटोरी। गौरिकान्त मेनारिया ने नये बिम्बो, प्रतीकों में से सजी अपनी रचना जीन कसे घोड़े की तरह निकल आता सूरज जब सुनाई मंच सहित तमाम सदन ने खूब दाद दी।

सुनीता निमिष ने कविता-
रंग कर तेरे रंग मे
मैंने खुद को तुझ में पाया
खो कर अपने आप को
हर सांस में तुझको समाया।
जैसी आध्यात्मिक प्रेम से परिपूर्ण कविता सुनाकर सबका मन मोह लिया।

डॉ निर्मला शर्मा ने एकदम नई सोच, नये मिज़ाज़ की कविता-
एक दिन मैं तुम्हारे घर आऊंगी
एक-एक कर रखूंगी कदम
तुम्हारे कदमों की छाप पर
जब तुम दरवाजा खोलने आओगे
इस तरह में तुम्हारे कदमों से कदम मिलाऊंगी” पढ़कर कार्यक्रम को बहुत ऊंचाई तक पंहुचा दिया।

वहीं राम दयाल मेहरा ने अपनी मायड़ बोली कि रचना “अब तो देर बहुत हो गयी है।
फिर भी लिखता जो कही है।
आता-जाता मनख घणा छै।
मनखपणा में के क जणा छै। सुनाकर आनंद का माहौल बना दिया।

डॉ राज कुमार व्यास ने अपनी समसामयिक रचनाओं से सभी की वाहः वाही बटोर ली, श्रेणीदान चारण ने मां तेरी ममता का कोई छोर नहीं मिलता सावन की घटा सा कोई घनघोर नहीं मिलता सुनाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। श्रीमती विजय लक्ष्मी देथा ने ज़िन्दगी की वास्तविकता को उकेरती हुई रचनायें व गीत सुनाये।

डॉ कुंजन आचार्य ने अपना श्रृंगार का गीत: “गीत भरे संबोधन में, बसती मन की आशा है। मन का पोर-पोर लिखता, यह धवल प्रेम की भाषा है। संबोधन के स्वर में घुलती, स्नेह भरी मिठास प्रिये। मैं तेरा हूं खास प्रिये.. और तुम मेरी हो खास प्रिये” पढ़कर सदन के माहौल को ही श्रृंगारित कर दिया।

तमाम कवियों ने एक से बढ़ कर एक रचना सुनाकर पूरा वातावरण साहित्य की सुगंध से सुरभित कर दिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कोटा विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति पीके दशोरा ने दो पिताओं की स्मृति में हुवे इस साहित्यिक आयोजन को समीचीन बताते हुए आशा पांडेय ओझा को साधुवाद दिया व कहा कि यह संस्कारों की सुगंध है जो नई पीढ़ी को भी खुद के भीतर सहेज के रखनी चाहिये, ताकि रिश्तों की दीवारें जर्जर होने व ढहने से बचाई जा सके। पीके दशोरा ने तमाम कवियों की कविताओं पर बड़ी सुंदर व समीक्षात्मक टिप्पणियां की।

कार्यक्रम अध्य्क्ष वरिष्ठ साहित्यकार किशन दाधीच ने अपने गीत एक सुहागन के सौ जन्मों के वास्ते जैसे चांद झील में उतरे इक चलनी के रास्ते व अपनी समसामयिक कविता ज्योति पुत्रों आपकी सूचना के लिये” टुकड़ा टुकड़ा हो जाती है भूमि
विभाजित हो जाता है सत्य,
ऐसा क्यों होता है?
एक प्रतापी पिता के
प्रलाप की तरह
सुनाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया

विशिष्ट अतिथि डॉक्टर प्रेम भंडारी अपने सुमधुर कंठ में ग़ज़ल जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैं मैं ने चेहरे पे तिरे यूँ तो लिखा कुछ भी नहीं”को जब अपने सुमधुर शायराना अंदाज में सुनाकर, सदन का मिज़ाज़ ही बदल दिया, विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मंजू चतुर्वेदी ने आशा पांडेय द्वारा अपने पिता व स्वसुर की स्मृति में किये गये कार्यक्रम पर अपनी बात कहते हुवे कहा कि स्मृति सम्मान भारतीय संस्कारों की सर्वोच्च स्थिति है। स्मृतियों के ताप से रची कविताओं में वो शक्ति होती है जो समाज को समृद्ध करती है। कविताओं से सजी सभा में सामाजिक पारिवारिक जीवन का स्वरूप देखा जा सकता है। उन्होंने अपनी कविता “बहनें” अलसाई दोपहरकि में अनंत बातें ले बैठीं बहनें, बचपन छूट जाता है पर यादें नहीं छूटती जैसी भावनात्मक अनुभूतियों की रचना पढ़कर स्मृतियों के झरोखों से सबको बचपन की ओर झांकने को विवश कर दिया।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉक्टर ज्योतिपुंज पण्डिया ने माहौल को बदलते हुवे मायड़ बोली वागड़ी में नाम ना चौक मईं
तण वाटं नै बेबटै ऊभौ वड़लौ
आपड़ा गाम नो इतिहसकार
आपड़ा गाम मईं
पीढी दर पीढी चालवा वारा
महाभारत नो भीष्म पितामह
नै राजा ययाति वजू
सदा पांचवरियौ जोवणियात बणी रेवा वाळो” रचना व वागड़ी गीत ढोल नगारं बजाड़ो.. पोग भार करी बैठो म्हारो छा छांइलो सुनाकर खूब तालियां बटोरी।

कार्यक्रम का अद्भुत व गरिमामयी संचालन उदयपुर के जाने माने कॉस्मेटोलोजिस्ट डॉ उपवन पंड्या ‘उजाला’ ने किया साथ ही उन्होंने अपने सुमधुर कंठ में गीत “नमी आँख की मैं, छुपाने चला हूँ, तुझे आज फिर से,भुलाने चला हूँ। तुम्हारी छुअन के, निशां वो पुराने, मैं अपने हृदय से मिटाने चला हूँ” सुनाकर सदन का भरपूर प्यार व स्नेह लूट लिया।

अंत मे कार्यक्रम संयोजक व संस्थान की संस्थापिका अध्य्क्ष श्रीमती आशा पांडेय ओझा ने सभी अपने दोहे “ऐसे कैसे मान लूं उनको बड़ा अदीब। आंखों में जिनकी नहीं, थौड़ी भी तहज़ीब।। व अन्य दोहे सुनकर सभी की भरपूर दाद लूटी। साथ ही अपने धन्यवाद उदबोधन में समस्त साहित्यकारों, आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम की व्यवस्थाएं प्रियंका भट्ट, अम्बुधि पांडेय व डॉक्टर मनीष श्रीमाली ने बख़ूबी निभाई।