लखनऊ (हि.स.)। दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने एक बार फिर चेताया है कि झूठे आंकड़ों और धमकी के बल पर पावर कार्पोरेशन प्रबंधन हजारों कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता। वहीं दूसरी तरफ पावर ऑफिसर एसोसिएशन के एक प्रतिनिधि मंडल ने ऊर्जा मंत्री एके शर्मा से मिलकर पीपीपी माॅडल का विरोध जताया।
संघर्ष समिति ने यह सवाल भी उठाया है कि आए दिन कर्मचारियों की सेवा शर्तों के बारे में मनगढ़ंत प्रोपेगेंडा कर रहे पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने बिना किसी अप्रूवल के निजीकरण का आर एफ पी डॉक्यूमेंट कैसे सर्कुलेट करना शुरू कर दिया है। साफ है कि यह सब झूठ का पुलिंदा है और बिजली कर्मचारी इससे भ्रमित होने वाले नहीं है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, सुहैल आबिद, पी.के. दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह आदि ने बताया कि निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों के गुस्से को देखते हुए पावर कार्पोरेशन प्रबंधन एफएक्यू के नाम से मनगढ़ंत प्रश्नोत्तरी आए दिन जारी कर रहा है, जिसके झांसे में बिजली कर्मी आने वाले नहीं हैं। संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण के बाद कर्मचारियों की भारी संख्या में छंटनी और पदावनति होने वाली है। आउटसोर्स कर्मचारी तत्काल हटा दिए जाएंगे। निजीकरण के बाद यही आगरा और अन्य स्थानों पर हुआ है।
संघर्ष समिति ने पूछा कि पावर कार्पोरेशन प्रबंधन द्वारा जारी की गई ताजा प्रश्नोत्तरी में आरएफपी डॉक्यूमेंट जारी किया गया है । कार्पोरेशन प्रबंधन को यह बताना चाहिए कि आरएफपी डॉक्यूमेंट निविदा मांगने के पहले कैसे सार्वजनिक किया जा रहा है, इसका आधार क्या है?
दक्षिणांचल और पूर्वांचल को पीपीपी मॉडल के तहत निजी क्षेत्र में दिए जाने की विरोध में गुरुवार को उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के नेतृत्व में एक सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री ए के शर्मा के आवास पर मुलाकात की। उनको बताया कि सबसे पहले चुन-चुन कर दलित व पिछड़े वर्ग के अभियंता कार्मिकों को दक्षिणांचल व पूर्वाचल में भेजा गया और अब दोनों कंपनियों का निजीकरण किया जा रहा है। सबसे ज्यादा नुकसान इससे दलित व पिछड़े वर्गों सहित आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का होगा, क्योंकि उनको मिलने वाला आरक्षण समाप्त हो जाएगा। स्वीकृत पद के अनुपात में यदि आरक्षण को निकाला जाए तो लगभग 16 हजार पदों पर आरक्षण की व्यवस्था समाप्त होगी जो दलित व पिछड़े वर्गों के लिए काफी निराशाजनक होगा।