चाह कर भी रुक न पाई,आज पलकें नम हमारी….
पी गयी अपमान हँसकर,जो दिया जग ने हृदय पर।
वक्त के हाथों लुटी मैं, ढह गई पूरी बिखरकर।
जल गई हर शाख मेरी,दग्ध अन्तस् आज भारी
आज पलकें नम हमारी…..
धूल में मैली हुई पर,है हृदय यह सद्य निर्मल ।
चिर अमा में भी खिला है,देख !उर का आज शतदल ।
है गहन तम से भरा डग,पर मुझे यह पीर प्यारी
आज पलकें नम हमारी
आज पाँखें खोल उर के,लक्ष्य पर अड़ना पड़ेगा
जय मिलेगी बात निश्चित,डग बढ़ा लडना पडेगा
स्वयं श्रेयस आ मिलेगा ,अब न उतरे यह खुमारी
आज पलकें नम हमारी…..
आज आयातित भले दुख ,सुख निमंत्रण भी मिलेगा
शूल चुभ ले आज जितने ,पुष्प कल निश्चित खिलेगा
थक गये पथ धूल के सब ,मैं नहीं पर लक्ष्य हारी
आज पलकें नम हमारी…..
लेखनी से क्या कहूँ मैं,व्यक्त यह उर की जुबानी
दर्द उतना ही मुखर है,यह व्यथा जितनी पुरानी
नैन बिच आई हृदय में,बह गई अभिव्यक्ति सारी
आज पलकें नम हमारी…
-अनुराधा पाण्डेय
नई दिल्ली