घर और सड़क के बीच
एक औरत है
घर उसके भीतर घर बनाकर बैठा है
सड़क उसके इंतजार में है
उसकी गोद में है बच्चा
और
उसकी पीठ पर सामान
घर भर का
उसके कंधों पर लटके हैं
अबूझे से सपने
बेताल की तरह
उसके एक पाँव पर गहरा नीला आकाश झुक आया है
उसके दूसरे पाँव पर टिकी है दुनिया भर की उम्मीद
वह एक पल को
घर को उतार कर रख देना चाहती है
अपनी देह से अलग
अपनी आत्मा से अलग
और चखना चाहती है
यात्रा की थकान का स्वाद
यह यात्रा जो सड़क से शुरू होकर
उसके भीतर तक पहुँचती है
वह फिर लौटेगी तो
घर और सड़क के बीच खड़ी होकर
नहीं चुनेगी घर या यात्रा
वह जब चाहे घर हो जाएगी
और जब मन आए
यात्रा की पीठ पर एक धौल जमाकर
निकल जाएगी!
-अनु प्रिया