ईद मनाती सरकारें
बलि का बकरा है जनता
मुफ्तखोर हैं लूट रहे
जेब कटाती है जनता…
आँसू पोंछ रहे
घड़ियालों के
जिनके दाँतों बीच फसी
पूँछ हिलाती है जनता…
फटे जेब पर
जश्न मनाती
दिल बहलाती
शोर मचाती है जनता…
फटे चिथे जीवन को
रोज ओढ़ती
रोज बिछाती
सिलती रहती है जनता…
रोटी देकर
आँखें छीनी
अंधियारे में
जीती रहती है जनता…
घर मेंं चोर
लुटेरे बैठे
दुराचार के दुआरे जाकर
मिमयाती रहती है जनता…
रोज सपेरे
डसते रहते
साँसे, भीख माँगती
सिसकती रहती है जनता…
-डॉ. राजेश दुबे
सागर (मप्र)