जो थे सच के गीत गाते यूँ ठिकाने लग गये
आजकल सब झूठ का परचम उठाने लग गये
फिर उन्हीं का जिक्र मेरे सामने छेड़ा गया,
जिनकी यादों को भुलाने में जमाने लग गये
बुद्धिजीवी सैनिको की मौत पर तो चुप रहे,
हाँ मगर गद्दार को वो सब बचाने लग गये
मैं अभी हारी नही थी जिंदगी की जंग को,
मेरे कुछ अपने नतीजे भी गिनाने लग गये
उनके जुगनू की हो पूजा उनकी है ख्वाहिश यही,
इसलिए वो दोष सूरज पर लगाने लग गये
-शीतल वाजपेयी