पूछ ना ये सफर ढला कैसे
पूछ ये कि तन्हा चला कैसे
कर वफा भी हमें वफा न मिली
यूं मिला प्यार का सिला कैसे
चाहता था हमें दिलो जां से
अजनबी सा वही मिला कैसे
याद उसने कभी किया ना सही
भूल जाऊं उसे भला कैसे
यूं ग़मों ने हमें है घेर लिया
अब ये टूटे भी सिलसिला कैसे
ज़िंदगी ने किए सितम लाखों
पूछ ना बन गई बला कैसे
मौत ही आख़िरी सहारा है
जाए उससे अनिल मिला कैसे
-समीर अनिल
(सौजन्य साहित्य किरण मंच)