दिल परेशाँ है उसकी ख़ातिर ये
और कर बैठी उसको ज़ाहिर ये
फिर से दरिया सराब निकला तो
प्यासा मर जाएगा मुसाफ़िर ये
कुछ असर ही नहीं हुआ उस पर
हुस्न किस काम का रहा फिर ये
आई किस रस्ते से थी तन्हाई
बज़्म में पहले से थी हाज़िर ये
दूर रखना हवा से चिंगारी
आग सुलगाने में है माहिर ये
इश्क़ है इश्क़ है कहा लेकिन
काश आँखों से करता ज़ाहिर ये
अब दुआ की तुम्हें ज़रूरत है
है सुमन मर्ज़-ए- इश्क़ आख़िर ये
-चित्रा भारद्वाज सुमन