अपने ही जख्मों को सहला कर देखा है
दिल हमने अक्सर यूं बहला कर देखा है
बीते वक्त के निशान छुपाने की खातिर
जिस्म को भी अपने छिलवा कर देखा है
जंगली फूलों सी फितरत पाई है हमने
ख्वाबों की कब्र पर लहलहा कर देखा है
टीस दबाई है यूं खुश्क लबों के भीतर
भरी हों आंखें फिर मुस्कुरा कर देखा है
चिराग सा जले हैं अंधेरे मिटाने के लिए
जुगनुओं की तरह टिमटिमा कर देखा है
कोई दावा नहीं,न वादा ही है किसी से
फिर भी खुद का दांव लगा कर देखा है
महक सदा बनी रहे जिन्दगी में सब की
प्रेम में पुष्प ने अक्सर मुरझा कर देखा है
-पुष्प प्रेम