मात् वीणा-पाणि हमको ज्ञान का उपहार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर, नव धार दे दो
वेदना है हर हृदय में, कंठ रोदन से भरे
स्वार्थी संसार में इंसान हैं सहमे-डरे
गुनगुनाएँ हम तराना, कंठ को झंकार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर, नव धार दे दो
अनमने अंतस में माँ, सरगम के नित नव स्वर भरो
लबों को मुस्कान दे, गुलजार सा मम मन करो
दुख मिटा कर मातु सब, खुशियों का अब अम्बार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर नव धार दे दो
दम्भ में सब जी रहे, छल और बल का राज है
प्रेम की पावन नदी को, जानता न समाज है
बैर आपस का मिटा कर, प्रेम मय मनुहार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर नव धार दे दो
घिर रहे घनघोर तम-घन, दिग्भ्रमित इंसान है
आज इस इंसान ने खो दी स्वयं पहचान है
तम मिटा अज्ञान का, उत्थान को रफ़्तार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर, नव धार दे दो
सार-गर्भित हो सृजन, आनंद ही आनंद हो
ले हिलोरें फिर हृदय, अनुभूति परमानन्द हो
छंद की रचना करें, भावों को माँ विस्तार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर, नव धार दे दो
ज्ञान के दीपक जलें, नित सत्य के पथ पर चलें
भेद आपस के मिटा कर, एक दूजे से मिलें
जो न फीका हो कभी, वह सृष्टि को श्रृंगार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर, नव धार दे दो
स्वप्न नयनों के सजीले पूर्ण हो जाएँ सभी
मुश्क़िलें आसान हों,परिपूर्ण हो जाएँ सभी
अर्चना है शारदे माँ!स्वर्ग सा संसार दे दो
प्रार्थना है लेखनी को विमल कर, नव धार दे दो
-स्नेहलता नीर