प्रेमालाप- अंकिता कुलश्रेष्ठ

*प्रिय*
शालीन सौम्य सद्गुण धारी
मोहक मनभावन हो मृदुरूप
अभिराम अलौकिक दिव्य तेज
हे देवि मुदित मन तुम अनूप

*प्रिया*
तुम पर मन करता है जीवन
जीवन का सार लुटा दूँ मैं
संकलित विश्व का निखिल प्यार
कर अंगीकार लुटा दूँ मैं।

*प्रिय*
जगती के जो सौंदय बिम्ब
सब पर अंकित कर भव्य नाम
संस्मरण पार्श्व के कर विस्मृत
करुणा पीड़ा को दूँ विराम

*प्रिया*
तन-मन तुमको अर्पित मेरा
तुम पर वारूं सारी दुनिया
तुम प्रेम रतन तुम जीवन धन
तुमसे पूरी मेरी दुनिया

*प्रिय*
मन सन्न अचंभित है जीवन
उपलब्धि समर्पणयुक्त प्रेम
तुम आईं लेकर जीवन मे
अनुबंध बन्ध से मुक्त प्रेम

*प्रिया*
आदर्श तुम्हारा प्रेम प्राण!
आदर्श हो तुम सद्जीवन के
विस्मित होकर देखेगा जग
सत्कार हमारे जीवन के

*प्रिय*
शीतल वताश नदी सी तुम
गतिमान किन्तु ठहरी ठहरी
मधु गन्ध युक्त कोकिला सरिस
जीवन उपनव की स्वर लहरी

*प्रिया*
पा लिया तुम्हें सौभाग्य जगा
जैसे चहुंओर सुमन महके
उपकार तुम्हारा है मुझ पर
जो थाम लिया अपना कहके

*प्रिय*
तुम ताजमहल तुम गंगाजल
मैं नभ विस्तृत तुम इन्दु मेरा
तुम आईं छम-छम जीवन में
आकर के मृदु संगीत भरा

*प्रिया*
तुम देवपुरुष अत्यंत नम्र
अद्भुततम हो तुम कलमवीर
हो धैर्यवान धरती समान
नभ से विस्तृत गंगा के नीर

-अंकिता कुलश्रेष्ठ