कभी भी…
बदरंग नही होता प्यार,
तुम्हारी लापरवाहियों की धूप मे
खुला छोड़ा है मैने इसे
कई बार…
आँखो की अंगनाईंयो मे भीगा बहुत
उदासियों की जब भी चली बयार;
बिछोह की ठिठुरन मे
ज़हन मे उभरती
तुम्हारी मुस्कानो की आंच से…
वसंत के नवांकुर सा
फिर फिर खिला है
हर बार
बदरंग नही होता प्यार।।
-बुशरा तबस्सुम