मोहब्बत क्या है साहेब, मेरे दिल का दुखड़ा है
मेरे हर गीत का पहला और आखिरी मुखड़ा है
बदन को बद बनाकर के जिसे तन में रखा था
बनेगा सहारा मेरा खुशी एक मन मे रखा था
सींचा था खुद में जिसको, मुझसे उखड़ा-उखड़ा है
मोहब्बत क्या है साहेब, मेरे दिल का दुखड़ा है
पिता में देखते थे हम कभी भगवान को अपना
माँ की ममता को हम कभी कहते थे गहना
अब समझते नही मुझको, जो मेरा ही टुकड़ा है
मोहब्बत क्या है साहेब, मेरे दिल का दुखड़ा है
निवाला खिलाकर अपना, नया जीवन जिसको दी
मिला गम मुझको बहुत केवल खुशी उसको दी
मेरे औलाद गैर समझकर, मुझसे ही बिछड़ा है
मोहब्बत क्या है साहेब, मेरे दिल का दुखड़ा है
-कुमार आर्यन
(सौजन्य साहित्य किरण मंच)