खिल गए हैं फूल कोयल छेड़ती सरगम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
कर रहा है नवसृज ऋतुराज धरती पर।
मन प्रफुल्लित मन रहा त्यौहार अब घर-घर।
दूर अम्बर और धरा का हो रहा संगम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
शीत के अति कोप से घायल हुए तरुवर।
पात पीले पड़ गए थे हो गया पतझर।
मौन फिर भी थे खड़े रक्खा सदा संयम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
रूप चमका धूप में, वसुधा लगे प्यारी।
तितलियों के दल उड़ें, अनुपम छटा न्यारी।
सब तृणों की नोक पर, मोती बने शबनम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
खिल गये कचनार, महुआ, आम बौराये
खिल गयी चंपा चमेली साँस महकाये।।
खिल गयी है पीत सरसों, लग रही अनुपम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
लाल कानन हो गए रक्तिम बुराशों से।
आग जैसे लग गयी सेंवल पलाशों से।
बन गयी जैसे धरा अब स्वर्ग का उद्गम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
कर रहे गुंजार भौंरे, पुष्प पर डोलें।
कान में जैसे कहें कुछ, राज कुछ खोलें।
बह रहा सुरभित पवन भी, चाल है मध्यम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
मन ₹-समंदर में उमंगों की तरंगे हैं।
फागुनी रँग में रँगे सब, रँग-बिरंगे हैं।
सौगुनी हो हर ख़ुशी, अब हो न कोई ग़म।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
मस्त मौसम पर विरह में ‘नीर’ झरता है।
बस सजन को रात दिन दिल याद करता है।
भेज दो कान्हा उन्हें दे प्यार का मरहम।
मीत मन भाने लगा है प्रीत का मौसम।
-स्नेहलता नीर