समेट लो मुझको बांहों में
मैं टूटा तो बिखर जाऊंगा।
मैं अश्कों का मोती हूँ
सहेज लो मुझको दामन में
एक कोने में रह लूंगा मैं
रहने दो मन के आंगन में
मुझे यूँ न निकालो मन से
मैं जीते जी मर जाऊंगा।
समेट लो मुझको बांहों में
मैं टूटा तो बिखर जाऊंगा।
कहती हो मत बांधो मुझको
मैं चंचल नदी की धारा हूँ
कुछ मेरा भी ख्याल करो
जैसा भी हूँ मैं तुम्हारा हूँ
कुछ घाव दिए है मैंने पर
मैं जख्म हूँ भर जाऊंगा।
समेट लो मुझको बांहों में
मैं टूटा तो बिखर जाऊंगा।
यह जीवन सौंपा है तुमको
तुम साँसों का अवलम्बन हो
कभी छुआ था होंठ से जिसको
तुम वो माथे का चुम्बन हो
जो सहेजी है प्रीत की पूंजी
बस नाम तेरे कर जाऊंगा।
समेट लो मुझको बांहों में
मैं टूटा तो बिखर जाऊंगा।
-रुचि शाही