ये जो तुम मेरी हर बात को
सिगरेट के धुंए की तरह
हँसी में उड़ा देते हो न
यक़ीन मानो,
मुझे कभी बुरा नहीं लगता
बल्कि मैं खुद को
तुम्हारे और भी करीब पाती हूँ
क्योंकि मैं जानती हूँ
सिगरेट का धुआं
जितना हवा में बिखर जाता है
उससे कहीं ज्यादा
सीने में उतर जाता है
साँसो के रग रग में घुल जाता है
और इस तरह
तुम्हारी हँसी के हर कश में
मेरी बेताब मुहब्बत
और भी गहरी होती जाती है।
-अनामिका चक्रवर्ती अनु