लड़कियाँ खोज ही लेती हैं खुशियाँ
कभी माँ की डाँट में
कभी मौसमी बरसात में
कभी काॅपी के पिछले पन्नों में
कभी सूने पड़े मुहल्लों में
कहने के लिए बातें बहुत सारी हैं
पर किससे कहें ये लाचारी है
कहती है कभी अपनी तनहाइयों से
कभी धूप की परछाईयों से
कभी चाँद से कभी चाँदनी रात से
कभी खुद के ही एहसास से
दुःखी होना और दुखी होकर
यूँ ही रह जाना नही आता
उन्हें
उनको बस आता है
तो केवल मुस्कुराना
बात बेबात हँसते जाना
गाना और गुनगुनाना
सब सहकर भी जी जाना
-शालिनी सिंह