धड़कने सीने से दो-चार चुराते जाते।
हमसे यूँ रस्मे-मुहब्बत तो निभाते जाते ।।
गैर की बज़्म में गर डर था परायों का तुम्हें।
सिर्फ़ नज़रों ही को नज़रों से मिलाते जाते।।
हिज्र की शब में शमा किस तरह सुलगती है।
एक चिंगारी मेरे दिल से जलाते जाते।।
ख़ुश्क मौसम में भी बादल में भीगना चाहा।
अब्र बन कर ही बरस जाते यूँ जाते जाते।।
रात का दिन में गुमाँ यूँ ही तो नहीं होता।।
खोल कर ज़ुल्फ़ ये शानों पे गिराते जाते।।
उम्र हसरत में मुहब्बत की काट लूँ ‘सन्दल’।
ख़्वाब इक आने का पलकों पे सजाते जाते।।
-प्रिया सिन्हा सन्दल